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चंदन की भाँति धिसे जाएंगे...
मिट जाएंगे..
परंतु चारों दिशाओं को मनभावन महकायेंगे...
भोर की कोमल किरणो ने धरती को हल्के से थपथपाया...
और पक्षियों ने समूह गान किया... उसी समय एक वयोवृद्ध धरती में गड्ढा बनाकर आम का पौधा लगा रहे थे... सहसा एक युवक बोल उठा, "हे पितामह ! आपके जीवन का शिशिर कब का आरंभ हो चुका है... फिर यह व्यर्थ परिश्रम क्यों ? आप के इस श्रम की क्या फलश्रुति ? इस वृक्ष के प्रथम आम्रफल का स्वाद लेने के लिए क्या आप जीवित रहेंगे ?" वृद्ध ने कहा, “पुत्र.. किसी अज्ञात हाथों द्वारा लगाए गये आम्रवृक्ष के फलों का स्वाद आजीवन चखता आया हूँ... वे चंदन की भाँति घिसते रहे तब जाकर सुगंध से महकते आम्रफल हमें प्राप्त हुए।" गद्गद् युवक ने वृद्ध का चरणस्पर्श कर इतना ही कहा... "स्वार्थपूर्ति के लिए एवं निःस्वार्थ सेवा से पलायन.. यह संदेश देनेवाले वर्तमान युग में... यदि कोई वंदनीय है तो केवल आप ही हैं... मेरा प्रणाम स्वीकार करें।"
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