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सूर्यास्त
के साथ साथ
युद्ध विराम हुआ... एक रात्रि
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के लिए... शूरवीर सेनापति ने घर लौटकर अपनी सहधर्मचारिणी से कहा... इस युद्ध में कल हमारी पराजय निश्चित है... पत्नी ने कहा... "भविष्य की कोख में यदि... आपकी हार है। तो भले ही हो... मुझे उसकी लज्जा नहीं है... मैं लज्जित हूँ आज के लिए” सेनापति ने कहा 'आज लज्जा किस लिए ? पराजय तो कल होगी...' वह वीरांगना बोली, “मेरे स्वामी आज अपना धैर्य खो चुके हैं... यही मेरी लज्जा का कारण है।” दूसरे दिन पति ने शौर्य का ऐसा प्रदर्शन किया कि पराजय जय में परिवर्तित हुई... याद रहे... ज्वार एवं भाटा प्राकृतिक नियम है... प्रशांत सागर भी कभी कभी प्रलयंकारी बन सकता है... उस समय ... धैर्य हारने वाले की मृत्यु निश्चित है...
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वो कौनसी मुसीबत है, जो बने आसान । हिम्मत है तेरे साथ, तो साथ है भगवान ।।
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