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________________ गुरुजनों का प्रदेश... अर्थात गुर्जर देश... पिया के घर जाती हुई एक नयी नवेली दुल्हन ने... गरवी गुजरात के राष्ट्रसंत श्री रविशंकर महाराज से चरण स्पर्श कर आशिष माँगा.... एक पल उसकी ओर देखकर व उसके मस्तक पर हाथ रखकर महाराज ने कहा - "बेटा ! नये घर में मंगल प्रवेश करते समय इतना ही सोचो... कि, मैं यहाँ सुख देने आयी हूँ... सुख लेने नहीं...'". नवविवाहिता ने शीष झुकाकर यह बात मान ली। ससुराल ही नहीं, अपितु समूचे संसार को स्वर्ग बनाने का यही सफल मार्ग है... हम सुख देने का प्रयास करे... सुख लेने की दौड़ में केवल चोट व खोट मिलेगी.. आइये, हर चोट हर खोट के लिए मरहम ढूँढते हैं... कहिए... मैं सुख देने आया हूँ... लेने नहीं... सब बदल जाएगा... और यह सात्विकता शाश्वत बने इसके लिए गाइये... यदि पैर में कॉटा चुभे, मुँह से आह न निकले, हार बनूँ या मसला जाऊं, दिल से आह न निकले, रंग रूप और परिमल से, उपवन को महकाऊँ, पुष्प समान जीवन मिले, बस यही अन्तर में चाहूँ। पुष्प समान जीवन मिले 79 w.jainelibrary.org an Education International For Private & Personal use on
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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