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72Jain Education International
जीने की विधि
या तो अकेले ही जीने की कला
सीख लेनी चाहिए या फिर सहजीवन
समूहजीवन जीने
का तरीका समझ लेना चाहिए।
परस्पर एक दूसरे को समझे बिना एक दूसरे को सहे बगैर सहजीवन संभावित नहीं हो सकता। अपने आप से प्रश्न कीजिए कि मैं किसी के अनुसार जीवन को ढाल सकता हूँ ? यदि नहीं तो फिर औरों से यह अपेक्षा क्यों रखनी चाहिए... कि वे हमारी इच्छा के मुताबिक जिएं ? मन को निराग्रही बनाकर तो साथ जिया जा सकेगा । दुराग्रही व्यवहार से हम कठोरतम होते जा रहे हैं ऐसे में न किसी की सहानुभूति टिकती है न कोई स्थायी
-मधुर सम्बन्ध बनता है।
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|| पक्षं कञ्चन नाश्रयेत् ।।