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________________ हम सबके भीतर विवेकशीलता का एक नन्हा सा अंकुर है उसे पानी की आवश्यकता है। जो जितना पानी देगा अंकुर उतना ही पनपेगा। हमारे प्रयत्न और संकल्प उस अंकुर की रक्षा के सजग प्रहरी होने चाहिए। इसलिए भी कि हमारी यात्रा का मार्ग अचानक कहीं अवरुद्ध न हो जाए....... मुझे ज्ञाता के साथ दृष्टा भी बनना है अकेले ज्ञाता होने से काम नहीं चलेगा, दृष्टि उसका अटूट अंग है। यही दृष्टि हमारा विवेक है। वास्तव में दृष्टि की पहचान ही सार्थक है। किसी ने व्यर्थ समझकर कूड़ेदान में कुछ फेंका है तो किसी ने उसी कूड़ेदान से कुछ बटोरा भी है इन दोनों में दृष्टियों का ही तो फेर है। इस फेर को जानने वाला जीवन में दृष्टि सम्पन्नता को प्राप्त कर सकता है। - ज्ञाता-दृष्टा बनो. ste do you really need to get the bus ।। आया मे णाणं आया मे दंसणं चैव ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only 71 www.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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