SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानव का मन पारे की भाँति है। अशुद्ध पारा खा लेने पर जीवन से हाथ धोने की नौबत आ जाती है किन्तु वही पारा जब शुद्ध और संस्कारित हो जाता है। तो अमूल्य औषधि बनकर जीवन का रक्षक बन जाता है। _संस्कार हीन मन अशुद्ध पारे के समान जीवन को नष्टभ्रष्ट कर देता है जबकि सुसंस्कृत और विशुद्ध मन जीवन को उन्नत, सुखी, महान, उच्च और पवित्र बना देता है। मन की शक्तियाँ विलक्षण है। जैसे कीचड़ जल से ही उत्पन्न होता है और उसका प्रक्षालन भी जल से ही किया जाता है। ठीक उसी प्रकार समस्त पाप मन से ही होते हैं और उनका प्रक्षालन भी मन से ही किया जाता है। इसीलिए कहा जाता है मन मनुष्य के जीवन की धुरी है। इसमें जीवन बदलने की शक्ति है। अन्तर्मुखी मन हमारा तारक है और बहिर्मुखी मन आत्मा को भवसागर में भटका देता है। मन की शक्ति HDOL 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy