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इस संसार में जीने के दो ढंग है - एक है लड़ना और दूसरा है सहना । इस
सृष्टि में प्रत्येक व्यक्ति इतना पुण्यशाली नहीं होता कि उसे उचित समय
पर सब कुछ मनचाहा मिल जाए..... चाहे घटना प्रिय हो या अप्रिय.....
चाहे सत्कार मिले या तिरस्कार..... व्याकुलता रहित होकर सहना सीखो।
और यह अमूल्य जीवन तो दूध से भरा हुआ प्याला है । जीवन में जो भी प्रतिकूलता है वह मात्र चुटकी भर राख जितनी है।
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यूँ भी इस संसार के समस्त पदार्थ और व्यक्ति अस्थिर और विनाशी हैं।
हर व्यक्ति में गुण भी है और दोष भी है..... परिस्थितियाँ सदा तब्दील
होती ही रहती हैं। ऐसे में सहनशीलता से सब कुछ स्वीकार करें।
२५ जो सहइ तस्स धम्मो ।
सहना सीखो
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