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भीतर में पवित्रता हो...
प्रत्येक व्यक्ति का अन्तस् शुभ एवं अशुभ लहरों से तरंगित है। जब मन के समुद्र में शुभ लहरें पैदा होती है तो वे बहुत शीघ्र ही समाप्त हो जाती हैं और जब अशुभ लहरें पैदा हो जाती हैं तो वह टिक जाती हैं। इसका एकमात्र कारण है शुभ में अरुचि और अशुभ में रुचि ।
{ भावपावित्र्यमाश्रयेत् ।
जब हम भीतर में उठने वाले अशुभ भावों में अधिक रुचि नहीं लेंगे तो वे भाव टिक नहीं पायेंगे। शुभ भावों में रुचि लेने से वह भाव टिक सकते हैं। उन भावों को तत्क्षण कार्य में ढाल लेना चाहिए।
शुभ भावों के जागृत होने पर प्रतीक्षा नहीं करें, शीघ्र कार्यान्वित कर लेना चाहिए। अशुभ भाव पैदा हो तो २४ घण्टे रुक जाना चाहिए।
इसलिए भारतीय संस्कृति का यह कथन है - 'शुभस्य शीघ्रम्' अर्थात् शुभ कार्य में देरी मत करो।
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