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विवेकी बनो
{{ तस्माद् भाव्यं विकिना {{
हम अपने जीवन में जो कुछ भी करते हैं वह मन के कहने पर करते हैं और मन जो भी कुछ कहता है वह पुराने संस्कारों के अनुसार ही कहता चला जाता है...
मन का कहा हुआ तभी अच्छा हो सकता है जब हमारे संस्कार भी अच्छे हो... यह संस्कार हमारे पूर्व जन्मों की पूँजी है। अतः विवेकी बनकर अशुभ संस्कारों के प्रभावों से बचना है।
जागृति भीतर में हो तो हम अशुभ संस्कारों में विवेक रख सकते हैं। एक बार आत्मा जागृत हो गई तो फिर उससे भूलें नहीं होती उसकी हालत ऐसी हो जाती है जैसे आँखें खुली हो तो आदमी दीवार से नहीं टकराता अपितु दरवाजे से निकल जाता है...
विवेकी बनकर हमें अशुभ प्रभावों से बचते रहना चाहिए...
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