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अपनी प्रशंसा जहाँ भी सुनने को मिले आप सावधान हो जाइए... इस मिठास में बड़ी गुदगुदी है जिसमें फिसलने ' की पूर्ण संभावना है। यह तो हमारा Chloroform है जो बेहोश कर देगा। अपनी प्रशंसा अपने आप नहीं करे... अपने गुणों की प्रशंसा करने से इन्द्र भी लघुता को प्राप्त होता है। क्या तुम चाहते हो कि दुनिया तुम को भला कहें ? यदि । चाहते हों तो तुम स्वयं को भला मत कहो । जब भी आत्मप्रशंसा में हम जुड़ जाते हैं तब गुब्बारे में हवा भर दी हो ऐसे फूलकर फैल जाते हैं... तब हमारे सारे विकास के द्वार बन्द हो जाते हैं। ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा ही सच्ची समझ को परिपक्व कर देती है। ऐसे में आत्मप्रशंसा का रस छूट जाता है।
से सावधान !
१६ शक्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः ।।
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