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रूठे सुजन मनाईये.
बहुत छोटी जिन्दगी है... चंद सांसों का सफर है... ऐसे में क्यों किसी से दुश्मनी रखना
और क्यों मनमुटाव रखकर रूठ जाना... जो हमसे रूठ गया है, नाराज हो गया है, उदास या भयभीत हो गया है उसे मुलायम मन से और दिलावर दिल से मनाएं... हो सकता है रूठने वाला छोटा हो पर मनाने वाला सदा बड़ा ही होता है। जैसे मोती की माला जितनी भी बार टूटे तो हम उन मूल्यवान मोतियों को झुक-झुककर समेटते हैं... बार-बार गिनते हैं कि कोई कम न हो और फिर सावधानी से पिरोते हैं। कहा भी है -
रूठे सुजन मनाईये जो रुठे सौ बार।
रहिमन फिर-फिर पोहिए, टूटे मुक्ताहार।। {{ उपसमियट्वं उवसमावियट्वं {{
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