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{१ सद्गुरुः शरणं मम ॥
सद्गुरु की शरण यह संसार जन्म, मरण, रोग, शोक, व्याधि और उपाधि के कारण महा दुःखमय है। ऐसे दुःखमय संसार में सार तो कुछ भी नहीं है और सुख भी कहीं नहीं है... इस वास्तविकता का बोध हो जाए तब उन्हें सच्चे सद्गुरु जो आत्मज्ञानी है उसके सान्निध्य की खोज कर लेनी चाहिए। ऐसे सद्गुरु जो कल्याण के मार्ग पर चल रहे हैं उनकी सेवा में मेरे जीवन का शेष समय बीत जाए...
ऐसे सद्गुरु का सत्संग करने से बुद्धि की जड़ता समाप्त होती है... विवेक जागृत होता है... उनकी वाणी सत्य का सिंचन करती है, पाप मिटाती है, प्रसन्नता देती है और मोक्ष रूपी मंजिल प्राप्त कराती है। ऐसे सद्गुरु के चरण-शरण मुझे हर जन्म में प्राप्त हो ।
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