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सरल कैसे बनें... सरल होने के लिए जटिलता को छोड़ना होगा....... मन को न बदलकर सिर्फ कपड़ों को बदलना एक धोखा है इससे मन में जटिलता आती है अर्थात् झूठे अभिनय छोड़ने होंगे क्योंकि अभिनय जटिलता लाता है। किसी भी अभिनय में हम स्वयं को छिपाते हैं और जो हम नहीं है वह दिखाना चाहते हैं।
जब मन में उदासी हो और घर में मेहमान आ जाए तो हम मुस्कुरा देते हैं तब हमारा व्यवहार जटिलता से । भरा हुआ होता है। सरलता कहती है कि जब मन में भाव नहीं है तो ऊपर-ऊपर से कैसे भाव प्रकट करो...
सरलता का सूत्र है - जो भीतर में है वही बाहर हो और जो बाहर में है वही मेरे भीतर में होना चाहिए....
भगवान महावीर ने भी कहा है - 'जहा अंतो तहा बाहि अर्थात् जैसे भीतर हो वैसे ही बाहर बने रहो।
{{ चित्ते वाचि क्रियायां च साधूनामेकरूपता {{
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