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रूप नहीं स्वरूप का चिन्तन करो...
१५.स्वरूपमनुचिन्तयेत् ।।
इस धरती पर मनुष्य थोड़ा-सा रूप क्या पा लेता है आकाश में उड़ने लगता है। 'मेरे जैसा रूप तो किसी का है ही नहीं' यह कहकर इतराने लगता है।
थोड़ा चिन्तन करो, किस रूप पर अभिमान कर रहे हो? अपने जिस रूप पर आज इतना इतरा रहे हो, अपने आगे के पच्चीस साल के रूप को देखोगे तो तुम्हारे चेहरे पर अनेकों झुरियाँ दिखाई देगी। यदि
और थोड़ा आगे जाकर के देखोगे तो हमारा यह सुन्दर सलौना रूप चिता पर सुलगता हुआ दिखाई देगा।
जिस-जिसने भी अपने स्वरूप को भूलकर इस रूप का अभिमान किया है उसकी अन्तिम परिणति यही रही है। किस रूप पर व्यक्ति इतना मुग्ध हो रहा है...? मक्खी के पंख से भी पतली शरीर की एक परत को उतारते ही सुन्दर सलौना दिखाई पड़ने वाला यह शरीर घृणा की चीज बन जाएगा। अतः शरीर के रूप की नहीं स्वरूप की चिन्ता करें। जो स्वरूप का चिन्तन करते हैं वे अजर-अमर हो जाते हैं।
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