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सम्यक्त्वी आत्मा
सम्यक्त्वी आत्मा यानी सच्ची समझ को जिसने प्राप्त कर लिया है। जिसने जान लिया है कि यह संसार सपने जैसा है। यह संसार मायाजाल से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
Just.
सम्यक्त्वी आत्मा संसार में रहता है पर संसार को अपना नहीं समझता। परिवार, ऐश्वर्य का भोग, शरीर के सुख-दुःख सबका अनुभव करते हुए भी अपने को उन सबसे अलग समझता है।
जैसे सेठ का मुनीम लाखों-करोड़ों का हिसाब रखता है, लेन-देन करता है परन्तु उस धन को अपना धन नहीं समझता। जिस दिन उस धन को अपना समझा तो जेल के दरवाजे दूर नहीं है। कहा भी है....
ऊपर से परिवार के बनकर रहो पर भीतर से वीतराग परमात्मा के बनकर रहो ।
HOW
आत्मा जब पर को अपना समझ लेता है। तो संसार की कैद में फंस जाता है और दुःख को बढ़ाता है ।
Abisthis me?
feds like paranoia ¡¡ONIH
IS
Jain Education International found myself in a FO
ERAIN
WALK INTO THE RA
from life itself
Walk away
A million
sound as SoNET Pramate & Persotalcuse Only
ALL
CONNECTED?
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