________________
सम्मान की इच्छा मत करो...
उत्तम पुरुष विकारों से विमुक्त होता हुआ पूजा एवं यश का इच्छुक न बनकर जीवन व्यतीत करता है। तुम्हें कोई भाग्यवान कहे तो फूलो मत... तुम्हें कोई बुद्धिमान या धनवान कहे तो खिलो मत... क्योंकि उनका बुद्धि का तराजू पत्थर तोलने का है... हीरा तोलने का नहीं। ध्वनियों में सबसे मधुर है प्रशंसा की ध्वनि। अतः इस ध्वनि से बचते रहो... कम से कम धर्म के अनुष्ठान तो कीर्ति, यश और प्रशंसा से दूर रहकर ही करें।
करनी ऐसी कीजिए जिसे न जाने कोय। जैसे मेहंदी पात में बैठी रंग छुपाय||
काम करना आपका काम है..... बस सिर्फ काम करें..... नाम नहीं चाहे. धर्म करना आपकी आत्मा का स्वभाव है, तो सम्मान की इच्छा मत करो।
११ सम्माननं परां हानि योगः कुरुते यतः ।।
23
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org