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________________ प्रसन्न प्रसन्नता आत्मा का स्वास्थ्य है जो वसंत की तरह सब कलियां खिला देता है। रहनासौखोसन्नता से अनेक सद्गुणों का जन्म ऐसी चित्त की प्रसन्नता जब स्थिर हो जाए तब ज्ञानी का ज्ञान झलकता है। हम प्रसन्न तो हो जाते हैं पर कुछ पलों के लिए..... हमारी प्रसन्नता में गहराई नहीं आ पाती, क्योंकि हमारी दृष्टि बड़ी उथली है। प्रसन्न रहने के लिए जो मिला..... जैसा मिला..... जितना भी मिला.... उसी में संतुष्ट रहो। अपनी बात मनवाने का आग्रह मत रखो। सहिष्णु बन कर किसी की सुनो। रना पड़ता है।। '' समझौता भी करना। हा है बंदे ! यह जीवन क्या रखा { उउप्पसने विमले व चंदिमा ।। बातों में छोटी-छोटी बार 29 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only: www.lainellbrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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