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सुधारो... भूलों को
भूल हो जाना स्वाभाविक है परन्तु उसे नहीं सुधारना दूसरी भूल है। भूलों को छिपाना सबसे बड़ा पाप है।
मनुष्य जीवन में दो भूलें करता है पहली बार अज्ञान वश करता है तो दूसरी बार अज्ञान को छिपाने के लिए......
अपनी भूलों का जानना है... जानकर चिन्तन करना है... चिन्तन से भीतर की जागृति बढ़ेगी तो गलती को सुधारने का रास्ता खुलेगा।
भूलों को स्वीकारने से भीतर की पात्रता निखरती है... किन्तु हमारा अहंकार भूलों को स्वीकारने नहीं देता.
हम यह सोचने की, कभी भूल न करें कि हम कभी भूल कर ही नहीं सकते... जब तक परमात्मा नहीं बनेंगे, तब तक भूलें होती रहेंगी।
६ अतिक्रमानतिक्रमेत ।
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