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________________ समता रखो मेरी समता हर स्थिति में बनी रहे.... जो स्वीकार भाव की क्षमता को बढ़ा सकता है वही सुख-चैन से जी सकता है। यदि जीवन में सुख हो या दुःख, लाभ हो या नुकसान, निन्दा हो या प्रशंसा, मान हो या अपमान इनको स्वीकार करेंगे तभी समता भाव को रखा जा सकता है। कोई भी दुःख व्यक्ति को कमजोर बनाता है और सुख उसे बंधन में डाल देता है। अतः जीवन में सुख व दुःख का चुनाव नहीं स्वीकार करना चाहिए। समता में रहने से मन के विचार शान्त हो जाते हैं। ऐसी भावना बनी रहे परवरदिगार | तू जो भी दे वह हो मुझे स्वीकार || हे प्रभू ! तेरे फूलों से भी प्यार | तेरे कांटों से भी प्यार || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary 17
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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