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{५ गौरवेण निमज्जति ११
अहंकार का त्याग पुण्य के उदय से साधन प्राप्त हुए हैं उसका अहंकार नहीं करें..... क्योंकि प्राप्त हुई शक्ति 'मदद' करने के लिए मिली है। धन, अधिकार, मान-सम्मान और ऐश्वर्य की प्राप्ति को 'ऋद्धिगौरव' कहा जाता है... खाने के लिए दूध, दही, मक्खन, मलाई जैसे रसवाले भोजन की सुलभता का अहंकार 'रस गौरव' कहा जाता है। शरीर की स्वस्थता के अहंकार को "साता गौरव' कहा जाता है..... ऐसी स्थितियों को आनन्द से भोगते समय पुण्य... से प्राप्त चीजों को पुनः पुण्य के कार्य में लगा देना चाहिए।
उदयमान पुण्य को पुण्य के कार्यों में RE-INVEST कर लेना ही बुद्धिमत्ता है।
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