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________________ mes My cantonion प्रायश्चित् मनुष्य के द्वारा पापों का किया जाना तो बुरा है ही। किन्तु उससे भी अधिक बुरा है उन पापों का पश्चात्ताप न करना। पश्चात्ताप हृदय में प्रज्वलित हुई वह अग्नि ____है जिसमें पाप जल जाते हैं और मन नये पापों का सृजन नहीं करता। पश्चात्ताप प्रायश्चित्त की पूर्वभूमिका है। कुछ लोगों का मानना है कि जो पाप किया जा चुका है उसके लिए पश्चात्ताप करने से कोई लाभ नहीं बल्कि इससे तो आत्मा कमजोर बन जाती है। ऐसा सोचना उनकी दूषित दृष्टि को दर्शाता है।। पापियों में भी ज्ञान का वह प्रकाश है जो पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त द्वारा प्रकाशित हो सकता है। तभी तो आप्त पुरुषों ने कहा - पापी से नहीं पाप से घृणा करो। जहाँ पश्चात्ताप का 'भाव है वहाँ आँखें छलक जाती हैं और आत्मनिंदा के भाव प्रकट होते हैं। प्रतिदिन एकांत में बैठकर स्वयं के द्वारा स्वयं के पापों को प्रकट करना चाहिए। स्वयं के दोषों की मीमांसा करने से भावों की विशुद्धि होती है। मनुष्य अक्सर अपने पापों को असत्य के आवरण में छिपाना चाहता है। उसे पश्चात्ताप के द्वारा मिटाना या हल्का करना नहीं चाहता। पाप छिपाने से उसमें भीतर ही भीतर वृद्धि होती है। अतः कहा है - पाप के शोलों को प्रायश्चित्त के जल से बुझाओ उस पर राख मत डालो। न जाने कब हवा का कोई झोंका राख को उड़ाकर आग को भड़का दें। १५ परितप्पेज्ज पौडए । गुरु के पास आलोचना लेकर प्रायश्चित्त वहन करने से पापो का प्रक्षालन होता है। For Private & Personal Use Only 16 bain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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