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शान्ति आज का शोर प्रिय मानव अपने जीवन में कुछ पलों के लिए शान्ति से जीना चाहता है। भारत के ऋषि मुनियों। ने दीर्घकालीन मौन की साधना करके शान्ति से जीने का उपदेश दिया। कहते हैं भारत के गाँवों और आश्रमों में इतनी शान्ति रहती थी कि यदि घास भी उगती तो उसकी आवाज सूनी जा सकती थी। आज इतना शोर है कि चीख-चीख। कर बोलने पर भी कोई किसी को सुन नहीं पा रहा है। जड़ हो या । चेतन सभी शोर मचाने में संलग्न हैं। पानी हो या हवा, वाद्य यंत्र हो या ध्वनि यंत्र, चुनावों के। प्रत्याशी का शोर हो या महंगाई के विरोध में शोर, चारों तरफ शोर ही शोर है। यहाँ तक कि परमात्मा को भी शोर से ही रिझाने में लगे हुए हैं। शोर को ही सफलता का शास्त्र मान लिया है। शोर चाहे बाहर का हो या भीतर का हमारे मनोमस्तिष्क और स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है। बाहर के शोर से मुक्ति फिर भी संभव है। किन्तु भीतर का शोरगुल दूर किए बिना शान्ति नहीं मिल सकती। संगत-असंगत विचारों की भीड़ से तभी शान्ति मिल सकती है जब आदमी अंतर में झांकने का निरंतर अभ्यास करें।
जैसे स्थिरता से रखे गए कदम पर्वत के शिखर तक पहुँचा देते हैं। इसी प्रकार भीतर झांकने वाला मन शान्ति तक पहुँचा देता है।।
शान्तिं दिशतु मे गुरुः ।।
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