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१५ अणुससिओ ण कुप्पिज्जा !!
अनुशासन DISCIPLINE
अनुशासन में रहने का शाब्दिक अर्थ है आज्ञानुसार चलना। किसी की आज्ञा में रहने से स्वतंत्रता भंग नहीं होती अपितु आज्ञा में रहने से व्यक्ति योग्य बनता है। यही कारण है कि गुरूकुल में भी सर्वप्रथम अनुशासन में रहने की कला सिखाई जाती है। अनुशासन से जीवन का निर्माण और व्यवहार की निर्मलता प्रकट होती है। जिस प्रकार जो पत्थर हथौड़े की चोटें खा सकता है छैनी से तपाशे जाने पर बिखरता नहीं वह प्रतिमा बनता है। ऐसे ही जो अनुशासन में रहता है वही महान बनता है। नदी के तटों में बंधे जल के समान अनुशासन जीवन को मर्यादित बना देता है। इस शब्द में केवल पाँच अक्षर हैं किंतु वे अपने आप में बड़ा महत्त्व छिपाए हए हैं। संसार नीति, राजनीति और धर्मनीति बिना अनुशासन के नहीं चलती। संसार नीति में अगर पुत्र माता-पिता की आज्ञा का पालन नहीं करता तो वह कुपुत्र कहलाता है। राजनीति में राज या सरकार की आज्ञा का पालन जो नहीं करता वह गद्दार कहलाता है। धर्मनीति में जो सर्वज्ञ की आज्ञा का पालन नहीं करता वह नास्तिक कहलाता है।
अनुशासन का मूल विनय है अतः अहंकारी व्यक्ति अनुशासन में नहीं रह सकता। जैसे धरती कोमल बनती है तो अनाज पैदा करती है। इसी प्रकार कोमल मन ही अनुशासन में रह सकता है। "निज पर शासन, फिर अनुशासन ।"
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