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________________ सत्य हमारा स्वभाव है और झूठ बोलना एक असहज तनाव है। झूठ को याद रखना पड़ता है, सच हमेशा वहीं का वहीं है अतः उसे याद रखने की जरूरत नहीं। झूठ की श्रृंखला होती है क्योंकि एक झूठ को दूसरे झूठ का सहारा चाहिए। उपनिषद में लिखा है - झूठ बोलने वाले को न मित्र मिलता है, न पुण्य और न यश। सच बोलना इतना सहज है कि मुख से सहसा निकल जाता है और झूठ बोलने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। झूठ में अनेक संयोग होते हैं परंतु सत्य का केवल एक ही रूप होता है। सत्य का केन्द्रीय अर्थ है कि ऐसा जीना जिस जीने में बाहर और भीतर का तालमेल हो, जिसमें कोई वंचना न हो। जो सत्य होने पर भी दूसरों को पीड़ा पहुँचाएं ऐसा दुर्भावयुक्त सत्य भी असत्य ही है। सत्य का मूल सरलता है तो असत्य का मूल राग-द्वेष है। मनुष्य के अंतः करण के अतिरिक्त सत्य कहीं भी प्राप्त नहीं होता इसलिए सत्य की ओर बढ़ने का पहला कदम है अन्तःकरण को सरल बनाना। जब तक मन में सत्य नहीं आता या मन सत्य के प्रति दृढ़ नहीं बनता तब तक वाणी का सत्य, सत्य नहीं माना जाता क्योंकि मानसिक सत्य के अभाव में वाचिक सत्य टिक नहीं पाता । सत्य FOR A WHILE UGLY OR FAIR AS HARD FACTS GOOD FEEL NOTHING IS AS POWERFUL FEARSOME MAKE YOU BEAUTIFUL LIES CAN साँच बराबर तप नही, झूठ बराबर पाप । जाके हृदये साँच है, ताके हृदये आप || साँच को कभी आँच नहीं आती । ।। सच्चं सोयं ।। सत्य को अपने जीवन में उतारना ही सत्य का सर्वोच्च सम्मान करना है । YOU NEED TO FIND OUT THE REAL 3DISTURBING 5AND FACTUAL TRUTH ONCE YOU KNOW HOW THINGS WORK YOU CAN FINALLY KNOW WHAT DECISION IS THE RIGHT DECISION
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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