________________
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने लिखा है - यह जीवन ताश के खेल की तरह है। हमने इस खेल के नियम भी खुद नहीं बनाये और न हम उन ताश के पत्तों के 'बंटवारे पर नियंत्रण रख सकते हैं। जैसी। हमारी किस्मत है वैसे पत्ते हमें बाँट दिये। जाते हैं। चाहे वे अच्छे हो या बुरे उन्हें 'ग्रहण तो करना ही है। इस सीमा तक नियतिवाद का शासन है परंतु इसमें एक स्वतंत्रता है। इस खेल को मनुष्य चाहे तो बढ़िया या घटिया ढंग से खेल सकता है।। हो सकता है कि किसी कुशल खिलाड़ी के पास खराब पत्ते आए हों और वह खेल में जीत जाए, यह भी संभव है कि किसी। नादान खिलाड़ी के पास अच्छे पत्ते आए हों फिर भी वह खेल में पराजित हो जाए। यह। जीवन चाहे नियति, विवशता और चुनाव का मिश्रण क्यों न हो पर इस जीवन को कलात्मक ढंग से जीना हमारी कुशलता है। कला श्रम नहीं बौद्धिकता मांगती है। भारतीय चिंतको ने कहा है - 'सव्वकला धम्मकला जिणाई'। धर्मकला सर्व कला को जीत लेती है। धर्मकला जीना सिखाती है और आत्मा का श्रृंगार करती है।
जीवन का सर्वश्रेष्ठ कलाकार वह है जिसने जीवन के सभी क्षणों को आनन्दमय बनाया। शुक्लपक्ष के चंद्र की भांति प्रतिदिन जीवन में सद्गुणों की वृद्धि करना और कृष्णपक्ष के चंद्र
की तरह प्रतिदिन दुर्गुणों को क्षीण करते Jain Education International Filch For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org