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A SPIRITUAL SAVIOR
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A SPIRITUAL KILLER
श्रद्धा
श्रद्धा हृदय की आँख है। हृदय की आँख जब खुल जाती है तब बुद्धि तुच्छ हो जाती है तथा जहाँ सोच-विचार और तर्क को कोई स्थान नहीं मिलता उस अवस्था का नाम है श्रद्धा। समुद्र में जब तूफान हो और आपकी नौका डगमगा रही हो तो तब श्रद्धा किनारों की बात करती है। जो नहीं देखा उस पर भी भरोसा, जो नहीं सुना उस पर भी भरोसा करना श्रद्धा सिखाती है। इसलिए कहते हैं कि अगर दिल न माने तो खुदा कोई हकीकत नहीं और दिल मान ले तो पत्थर भी भगवान है। श्रद्धा तो किसान की तरह होनी चाहिए। जैसे किसान बीज बोता है किन्तु उसे नहीं पता कि बीज पनपेंगे या नहीं, बारिश होगी या नहीं क्योंकि बीज सड़ भी सकता है और कभी जल भी सकता है फिर भी किसान बीज बोता है। आम तौर पर लोग श्रद्धालु को कमजोर समझते हैं किन्तु यह बात गलत है क्योंकि श्रद्धा यानी अनजान में उतरने का साहस । समुद्र में गोता लगाने पर भी यदि मोती हाथ न लगे तो यह मत मानो कि समुद्र में मोती नहीं है, बल्कि यह सोचो कि बार-बार गोते लगाने का साहस अपेक्षित है। यह साहस श्रद्धा से ही जागता है।
श्रद्धा स्वादो न खलु रसितो, हारितं तेन जन्मः ।। श्रद्धा का स्वाद जिसने नहीं चखा, उसका जन्म लेना निरर्थक है।
FAITH AND WORRYING IS LIKE WATER AND OIL. THEY DON'T & NEVER WILL GO WELL TOGETHER.
श्रद्धा का सीधा सम्बन्ध हमारी मन की दृढ़ता के साथ है।
अतः श्रद्धालु कभी कमजोर हो ही नहीं सकता।
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