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________________ त्याग {{ त्यागेनैकेऽमृतत्वमानशुः १४ संसार के दो तट हैं - भोग और त्याग। भोग के तट पर अनगिनत कामनाओं की लहरें दौड़ती हैं। चाहे वह कामना संपत्ति की हो, पद की हो या शक्ति की हो। कामनाएँ मात्र अंतहीन संघर्ष और विरोधों का द्वन्द्व ही पैदा करती हैं। जो त्याग के तट पर खड़े हैं उनकी सारी लहरें समाप्त हो जाती हैं और मन शांति की अनुभूति करता है। जीवन का विकास विलास से नहीं त्याग से होता है। त्याग के बिना गति नहीं हो सकती। जैसे एक आदमी एक कदम भी चलता है तो उसे वह जमीन छोड़ देनी पडती है जिस पर वह खड़ा था तभी वह आगे बढ़ पाता है। स्पष्ट है कि गति तब तक नहीं हो सकेगी जब तक हम उसे छोड़ने को राजी न हों। जिस भोग सामग्री को अंतिम समय विवशता से छोड़ना ही है तो उन्हें पहले ही स्वेच्छा से समझपूर्वक छोड़ देना चाहिए। कहा भी है Expired होने से पहले Retired होने में मजा है। यदि वृक्ष फलों का त्याग न करें, नदी जल देना बंद करे तो सर्वत्र त्राहि-त्राहि हो जाएगी। प्रकृति भी त्याग की प्रेरणा देती है। त्याग के बदले में किसी वस्तु की कामना करना कोरा बनियापन है। बेबसी या प्रलोभन का नाम त्याग नहीं है, सामर्थ्य का नाम त्याग है। ve Education International For Private & Personal Use Only ainiorary.org 2012
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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