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सम्बन्धों को संभाले
चाहे ज़िन्दगी कितनी छोटी क्यों न हो परन्तु हम अकेले नहीं जी सकते | हम सम्बन्धों के धागों को बुन लेते हैं। जिन सम्बन्धों से बंधकर थकान, टूटन और घुटन पैदा नहीं होती हो वही सच्चे सम्बन्ध हैं। जिन सम्बन्धों में स्निग्धता, जीवंतता और सुगंध बनी रहती हो वे ही सच्चे सम्बन्ध हैं। जैसे एक बीज के लिए उचित मात्रा में खाद, पानी, धूप और हवा चाहिए तभी उसका पोषण समय पर हो सकता है। ठीक उसी प्रकार हमें सम्बन्धों के पौधे को विकसित करने के लिए प्रेम... विश्वास... सहयोग और सहिष्णुता का पोषण जरूरी है।
सम्बन्धों में स्वस्थता रहेगी तो जीवन स्वर्ग बन सकता है।
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।। पोष्यपोषकः ।।
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