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जिन्दगी एक कांच की फूलदानी है, पता नही कब यह हमारे हाथ से फिसल जाएगी...? अब सिर्फ इस जीवन के निर्माण - कार्य
में लग जाना है। यह मानव - जीवन परम अनूकूलताआ का पुरुषार्थ की साधना करने का समय है।
आत्मा से परमात्मा बनना या उपासक से उपास्य बनने के लिए सम्यक् दिशा में पुरूषार्थ करने का नाम ही परम पुरूषार्थ है। इस जन्म में हमें स्वस्थ शरीर, परिपूर्ण इन्द्रियाँ और सुन्दर मन मिला है... ऐसी अनुकूलताओं को पाकर भी आत्म कल्याण के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ तो प्रतिकूलता के क्षणों में आत्म विकास करना कितना कठिन होगा। यदि आपके पास अपार संपत्ति है तो दान-धर्म की आराधना सहज संभव है। स्वस्थ शरीर का योग मिला है तो तपधर्म सुगम है। सुन्दर मन मिला है तो आत्मा को शुभ भावों से सुवासित करना सरल है।
११ दुर्लभं प्राप्य मानुष्यं विधेयं हितमात्मनः ।
सार इतना ही है शक्ति के काल में
धर्माचरण का पुरुषार्थ करके
प्राप्त अनुकूल समय और साधनों को
साध लेना चाहिए।
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