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भाषा काविवेक
मेरी वाणी के सम्बन्ध में मुझे कुछ चिन्तन करना है -
यदि मैंने कर्कश, कठोर, दूसरे प्राणी को पीड़ा पहुँचाने वाली भाषा बोली हो.....
कभी मैंने दूसरों के मर्म यानी रहस्य प्रकट करने वाली भाषा बोली हो... कभी मैंने पापकारी यानी पाप को प्रेरणा देने वाली भाषा बोली हो.....
कभी कपटपूर्वक दो अर्थ निकले ऐसी भाषा बोली हो....
कभी क्लेश पैदा हो ऐसी भाषा बोली हो......
इस प्रकार की दोषपूर्ण भाषा मुझसे बोली गई हो....... या बुलवाई गई हो या बोलने वाले की प्रशंसा की हो तो मुझे धिक्कार है.....
मुझे क्षमा करें.....
समावयंता वयणाभिधाया ।।
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