________________
challenge
जीवन में जो भी श्रेष्ठ हैं वह बिना मूल्य के नहीं मिलता। सभी चुनौतियाँ पुरूषार्थ से हासिल होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि मधु की एक बूंद के लिए मधुमक्खी को लगभग सौ पुष्पों के चरण चूमने पड़ते हैं। सिद्धि के बिना प्रसिद्धि नहीं मिलती, काम के बिना नाम नहीं मिलता । किन्तु आज का मनुष्य साध्य तो पाना चाहता है पर साधना नहीं करता। कुछ करेंगे __तब तक मिलेगा। हाथ से मुँह तक भोजन पहुँचाने पर ही पेट भरेगा। निरंतर चलने वाली चींटी मेरूपर्वत पर पहुँच जाती है किन्तु पाँव नहीं हिलाने वाला गरूड़ पास के वृक्ष पर भी नहीं पहुँच पाता। मिट्टी में सोना, सीप में मोती और कोयले से हीरे बिना श्रम के नहीं मिलते। श्रम से हम इस योग्य बनते हैं कि पात्रता का द्वार खुल जाता है। पात्रता ही सफलता का आधार है। याद रखना इन अंगुलियों से ही भाग्य का लेख लिखा जाता है। यह पुरूषार्थ का देवता भीख माँगने के लिए नहीं है। भाग्य को कोसने में जितना समय लगता है उतना यदि निर्माण में लग जाए तो आप मंदिर के देवता होंगे और भाग्य स्वयं आपका पुजारी बन जायेगा। पुरूषार्थी मनुष्य के लिए सुमेरू पर्वत की चोटी बहुत ऊँची नहीं है, न उसके लिए रसातल बहुत नीचा है और न समुद्र अथाह है।
ORN
उद्यमेन हि सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य, प्रविशन्ति मुखे मृगाः ।। उद्यम से ही कार्य सिद्ध होते है, न केवल इच्छाओं को रखने से, जैसे सोये हुए सिंह के मुख में मृग (पशु) स्वयं प्रवेश नहीं करते | वैसे ही सोया हुआ मानव, महामानव नहीं बन सकता |
1342
FORCion internationa
Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org