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________________ NLY HUNAUNAN ONLYHUMANON UMA NOTAMANHUMANSIMPLY RUMAH SIMPLY JUST AHIUM NUSTHUMAN HUMAN BOVERY HUMAN JUST AHUMAN HUMANO TUMANONLYHO SUITESIMPLYHUMAN SIMP SIMPLEMENTE HUMAN HUMANO SIMPLY ONL SIMPLY A HUMAK HUMAN NOT TOOHU USTHUMA UMANA MERE JUST ONLY A HUMANS HUMANJUST HUMANIST SUNDLYMEONLY DHEVANA SIMPLYI HUMA ERELYHUNA JUSTHUNA HUMAN ONLYASIM EVEN MORE HUMAN 40130 HUMAN SIMPLYH TLY SIMPLS VERY HUMA HUMANO TUCHAHD JUMANJUST BIMPLI USTA MEREI YMOSTLYHEN UPLAIN AUMAP SAME MERE UMANOME आत्मा के खजाने NOTSOHU को प्राप्त करने Y HUMAN JUSTMAN SNLY HUONLYONLY HUI की चाबी है - AN SIMPLY HUMA SIMPJUSTARMAN JUMPLE शरीर। इस सच्चाई को हम जन्म जन्मांतर NOT SOHUMI से भूल गए हैं इसलिए सिर्फ ANYMORE उसके बाहरी सफाई को महत्व देकर MERE ONLYJUST ME SINPLY HUMANONLY HUMANMAN उसे पुष्ट करने में लगे रहते हैं। इस चाबी UNBELIEVBLY HU IANDTX HUMAN से आत्मसंपदा का अनमोल खजाना प्राप्त हो USTAHUMANJUS सकता है। हमने शरीर को साधन नहीं साध्य बना दिया है। तीर्थंकर प्रभु महावीर ने कहा। KAN HUMANOI ONLY HUMANILY - शरीर नौका है, आत्मा नाविक है और यह HUMAN संसार समुद्र है। बिना नाविक के नौका का कोई अर्थ नहीं। नौका के बिना नाविक उस MOSTLYHU NOTSO HUI पार नहीं पहुँच सकता। नौका साधन । HUMAN है, नाविक साधक है अतः साधक की USTM पहली जरूरत शरीर है। इस शरीर का IMPLVH JUMAI ONLYAMA स्वभाव जीर्ण-शीर्ण होने का है। हर SIMPL क्षण इसका ह्रास हो रहा है। जब तक यह नौका छिद्रों से रहित है तब तक ही सागर पार कर लो अन्यथा ये । नौका मझधार में कभी भी धोखा दे सकती है। कहते हैं वीणा के तार यदि टूट जाए तब भी उसका महत्त्व है क्योंकि दूसरे तार बांधकर पुनः । मधुर स्वर लहरियाँ प्रकट हो सकती हैं। दीपक की ज्योति बुझ जाने पर पुनः तेल भरा जा सकता है बत्ती भी बदली जा सकती है और दीपक को प्रज्ज्वलित करने की पूर्ण सुविधा है किन्तु एक बार शरीरसे आत्मा के निकल जाने पर इस शरीर का कोई महत्त्व नहीं अतः शरीर की शक्ति को धर्माचरण में {{ सरीरमाहु नाच त्ति जीवो चुच्चइ नाविओ {{ लगा दो। 133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ATHUMAN QUES BUTY HUNAN 100 MEREMUM
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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