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सहयोग
जीवन एक महामन्त्र है इसे संपन्न करने के लिए सहयोग की नितांत आवश्यकता है। जैन दर्शन का यह आदर्श है 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्'' अर्थात् एक दूसरे के उपग्रह, सहयोग से जीवन चलता है। सहयोग के अभाव में जीवन "मत्स्य न्याय' की तरह है। जैसे बड़ी मछली छोटी को खा लेती है। मनुष्य तो क्या देवता भी एक दूसरे के सहयोग के बिना अपने कार्य में सफल नहीं होते। न एक अंगुली से चुटकी बज सकती है न एक अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है। दूसरों की मदद करना ही अपने आपके लिए मदद प्राप्त करने का मार्ग है। इस दुनिया में ऐसा कोई गरीब नहीं जो दूसरों को सहयोग न दे सके और कोई ऐसा अमीर नहीं जिसे कभी दूसरों की जरूरत ही न पड़े। आज के आदमी की स्थिति ऐसी है जहाँ परस्पर संग तो है पर सहयोग नहीं। जीवन तो द्वीप की भाँति होना चाहिए जो डूबते हुए प्राणियों को सहारा दे। सहयोग के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य छुपा है ''सुख देने से सुख मिलता है और दुःख देने से दुःख ।'' इसलिए ज्ञानियों ने कहा है - बुराई के बदले भलाई करो तो बुराई दब जाएगी; बुराई के बदले बुराई करोगे तो बुराई फिर उभर आएगी।
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