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________________ मस्तिष्क शरीर का उत्तमांग है क्योंकि वह सत्यासत्य की यथार्थ परख करने में सक्षम है। जिसका मस्तिष्क विकृत हो जाए उसका जीवन स्वस्थ-स्वच्छ एवं संतुलित नहीं रह सकता। मस्तिष्क एक अलमारी की भाँति है। जैसे अलमारी में व्यर्थ और रद्दी वस्तुएँ भरी हों तो उसमें उपयोगी और सुन्दर वस्तुएँ नहीं रखी जा सकती। निरर्थक वस्तुओं के साथ यदि बढ़िया वस्तुएँ रख भी दी जाएँ तो उसका मूल्य और सौन्दर्य कम हो जाता है। इसी प्रकार मस्तिष्क की अलमारी में यदि अशुभ विचार भरे हैं तो अच्छे विचारों को उसमें स्थान नहीं मि लेगा। अशुभ विचारों के साथ यदि अच्छे विचार भी रख दिये जाएँ तो वे वैसे ही लगेंगे जैसे पीतल की {{चित्तरत्नमसक्लिष्टमान्तरं धनमुच्यते ।। अंगूठी में किसी ने बहुमूल्य हीरे को जड़ दिया हो। अच्छे विचार रखना मस्तिष्क की सुन्दरता है। दुष्ट विचार ही मनुष्य को दुष्ट कार्य की ओर ले जाते हैं। मस्तिष्क की भूमि में दुर्विचार रूपी बबूल को पैदा होने में समय नहीं लगता न ही उसके लिए कोई खादपानी या माली की जरूरत होती है किन्तु सद्विचार रूपी आम को फलने में समय लगता है। उसको खाद-पानी और अच्छे माली के द्वारा परवरिश की आवश्यकता है। मस्तिष्क Education Intemational For Private & Personal use Jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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