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धीरज
धीरे-धीरे से मना, धीरे सब कुछ होय । माली सिंचे सौ घड़ा, ऋतु आवे फल होय ||
।। धीरः साफल्यमाप्नुयात् ।।
घर को सुव्यवस्थित और मन को स्वस्थ रखना है तो धीरज रामबाण औषधि है। जल्दबाजी तो कमजोर और चिंतित दिल की निशानी है। प्रकृति में सारे काम धीरे-धीरे होते हैं। प्रकृति कभी शीघ्रता नहीं करती। कहते भी हैं - क्षण भर का धीरज, दस वर्ष की राहत । धीरज सभ्यता की एकमात्र कसौटी है । जो आप नहीं बदल सकते उसे धीरज जीना सीखाता है। अतः सहिष्णुता को इतना मजबूत कीजिए कि आप आस-पास के वातावरण का निरीक्षण कर सके। लोग समझते हैं कि सहना तो मजबूरी का नाम है किन्तु वास्तविकता यह है कि सहनशील होना मजबूरी का नहीं धैर्य का मापदंड है। जब कोई कटु शब्द या किसी के द्वारा किया गया तीखा व्यवहार मन में चुभन पैदा करने लगे तब वाणी को मौन रखकर थोड़ा वक्त गुजरने दो। हो सकता है सामने वाले को स्वयं पश्चाताप हो जाए या हमें उसके उस वचन या व्यवहार के पीछे रहा हुआ आशय स्पष्ट रूप से समझ में आ जाए। तभी तो महापुरूषों ने कहा है-अपने मन को गमले के पौधे की तरह मत बनाना कि लू का एक झोंका जिसे सुखा दे। मन को जंगल के वृक्ष की तरह बनाना जो धूप, वर्षा, ओले और पाले में भी किसी की परवाह नहीं करता ।
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