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मौन
शक्ति को संचित करने का एक अपूर्व साधन है - मौन। मौन से न केवल विकेन्द्रित शक्ति संचित होती है अपितु वाणी में बल एवं तेज भी जागृत होता है। अपने कार्य के लिए व्यक्ति स्वयं बोले इसमें उसकी महानता नहीं होती है। महानता इसमें है कि उसका कार्य ही स्वयं बोले। कवि, चित्रकार, लेखक या कलाकार जब कभी किसी कार्य के निर्माण में तल्लीन होते हैं तब वे बोलते नहीं हैं। जब भी मन में तन्मयता और एकाग्रता जागती है तो वाणी मौन हो जाती है। स्पष्ट है कि वाणी का मौन ही कार्य को सिद्ध करता है। जैसे घोंसला सोती हुई चिड़ियों को आश्रय देता है वैसे ही मौन हमारी वाणी को आश्रय देगा। मौन का महत्व उसके उद्देश्य में निहित है। यदि मौन भय प्रेरित है तो वह पशुता का चिन्ह है। संयम से उत्पन्न मौन साधुता है। एक अरबी कहावत भी है - मौन के वृक्ष पर ही शांति के फल लगते हैं। ज्ञानी की वाणी का प्रवाह नदी की भाँति गहरा होता है अतः वह जहाँ-तहाँ नहीं बिखरता । नदी जहाँ गहरी होती है जलप्रवाह अत्यंत शांत और गंभीर रहता है। बादलों के आने पर कोयल भी खामोश हो जाती है क्योंकि जहाँ मेंढ़क टरतेि हों वहां मौन ही शोभा देता है। मौन के गहनतम पल में साधक स्वयं से सम्बन्ध जोड़ता है।
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AKSKI!
१६ सम्यक्त्वमेव तन्मौनम् ।।
People have big mouths and they love to tall
with or without sense, they just think that they can get the world by their talk
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