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प्रतिकूलता
जीवन में जब कभी किसी इष्ट वस्तु, व्यक्ति और परिस्थिति का वियोग होता है और अनिष्ट का जब संयोग होता है तब मन कल्पनातीत दुःख का अनुभव करता है। मन की इस आदत से मनुष्य हर क्षण दुःखी रहता है। रूस के प्रसिद्ध लेखक Leo Tolstoy ने एक बहुत ही सुंदर बात लिखी है-मनुष्य सबसे अधिक यातना अपने विचारों से ही भोगता है। मन की यह खासियत है कि उसे जो वस्तु पसंद न हो, जो व्यक्ति अप्रिय लगता हो और जो घटनाएँ प्रतिकूल हों, उन क्षणों में नाना प्रकार की संभावनाएं सोच कर उस यातना को वह भयंकर बना लेता है। उससे छूटने के लिए अधीर हो जाता है। ऐसे में पाँच मिनट का समय भी पाँच घंटे जितना लंबा हो जाता है। इससे स्पष्ट हुआ कि प्रतिकूलता को झेलने की मानसिकता तैयार न हो तो मन व्याकुल हो जाता है। किसी भी प्रतिकूलता का प्रतिकार या तिरस्कार करने से वह घटती नहीं अपितु दुगुनी हो जाती है ऐसी चित्तवृत्ति का यही समाधान है कि मन की छत को थोड़ा मजबूत बना लो। मजबूत मन मजबूत छत की भाँति काम करेगा। जैसे छत मजबूत हो तो आँधी-तूफान, सर्दी-गर्मी, वर्षा आदि का उस पर असर नहीं होता। वैसे ही मन मजबूत हो तो उस पर प्रतिकूलता का कोई प्रभाव नहीं होगा ।
॥ वसुंधरा इव सव्वफासविसहे ।।
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