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मूल्यवान
३१ ज्ञाते ह्यात्मनि नो भूयो ज्ञातव्यमवशिष्यते ।।
परमात्मा महावीर ने कहा कि जीवन में यदि कुछ मूल्यवान है तो वह है स्वयं को जानना। स्वयं के मूल्य से बढ़कर दुनिया में और कुछ मूल्यवान
हो ही नहीं सकता। जो उसे पा लेता है वह सब म) कुछ पा लेता है और जो उसे खो देता है वह । सब कुछ खो देता है। संपन्न होने की कसौटी है।
स्वयं को पा लेना और कंगाल होने की कसौटी है। स्वयं को खो देना। यूं तो जिंदगी में हम जिसको
भी मूल्यवान समझते हैं अंततः वह सब सारहीन - सिद्ध हो जाता है। जैसे मनुष्य ने सबसे प्रथम नंबर
पर धन को मूल्यवान माना किन्तु मृत्यु आने पर की वह सब यहीं पड़ा रह गया। जो साथ न जा सके। ल वह मूल्यवान कैसे होगा। समाज में यश मिला, • लोगों ने प्रशंसा की, फूल मालाएं पहनाईं और
तालियां बजा दी किन्तु जो आज प्रशंसा करते हैं। वे कल निंदा भी तो करते हैं। यदि किसी ने स्वयं को खो कर जगत के समस्त ऐश्वर्य, पद-प्रतिष्ठा को पा भी लिया तो समझना उसने बड़ा महंगा सौदा किया। यह एक ऐसा सौदा है कि हीरेमोती देकर बदले में कंकर-पत्थर खरीद लिए।। अपने अतिरिक्त अपना यहाँ कुछ भी नहीं है...।
अतः वही जीवन सार्थक है जिसने स्वयं की मूल्यवत्ता को समझकर
आत्मा को जान लिया।
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