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________________ मैत्री सम्बन्ध नहीं स्वभाव है। सम्बन्ध का अर्थ है बांधना। - मनुष्य के मन का यह स्वभाव है कि वह दूसरों को अपने से तथा अपने को दूसरों से बांधता हैं। यह निश्चित है कि जो बांधा गया है वह कभी न कभी खुल भी जाएगा। जो स्थापित हुआ है वह कभी विस्थापित भी हो जाएगा। ये सम्बन्धों के बंधन समान रूचियाँ और सामूहिक स्वार्थों पर आधारित होते हैं। मैत्री संबंधों में स्थिरता का रहस्य यह है कि दूसरों के साथ मैत्री को स्थायी आधार तभी मिल सकता है जब हमारी अपने साथ मैत्री सुप्रतिष्ठित हो। जो अपना मित्र है वह हर किसी का मित्र हो सकेगा क्योंकि जो अपना मित्र होगा वह कभी दूसरों का बुरा नहीं कर सकेगा। दूसरों के लिए भी वही चाहेगा जो अपने लिए चाहता है क्योंकि वेदों में मित्र शब्द सूर्य के लिए आया है। सूर्य सबका मित्र है और सबको समान रूप से प्रकाश देता है। इसी प्रकार जिसके अंतःकरण में सबके प्रति सतत मैत्री की धारा प्रवाहित होती हो वही अपना । मित्र हो सकता है। प्रभु महावीर ने कहा है - "सभी प्राणियों के ( साथ मेरी मैत्री है। प्राणी मात्र से प्रेम ही मैत्री के तार को जीवित - रख सकता है।" ये प्रेम की भावना सर्वप्रथम अपने घर से प्रारंभ होनी चाहिए। पहले अपने माता-पिता के साथ प्रेम भाव हो, भाईबहन से प्रेम हो फिर मैत्री संसार के सभी प्राणियों से संभव है। {{ विनय ! विचिन्तय मित्रतां त्रिजगतीजनतासु सबसे मैत्रीय भाव कराऊँगा, दीन दुःखी पर करुणा मैं लाऊँगा सुधरे जीवन तस्वीर परम गुरु जगपति प्रभु महावीर 2 n Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.com
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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