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संदपयोग
वस्तु का उपयोग दो दिशाओं में होता है-सदुपयोग और दुरूपयोग। सदुपयोग से जीवन में लाभ होता है और दुरूपयोग से हानि होती है। जिस औषधि को शरीर पर लगाने से आराम मिलता है उसे यदि खा लिया जाए तो वह प्राणघातक बन जाती है। शीतल जल यदि मुख में डाला जाए तो वह प्राणदायक बन जाता है किन्तु वही जल यदि कान में चला जाए तो पीड़ादायक बनता है। तन पर लगाया इत्र अपनी सुवास से मन को प्रफुल्लित कर देता है किन्तु यदि वह मुँह में चला जाए तो मुख कड़वा और कषैला हो जाता है। इन सब उदाहरणों से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि वस्तु का सही उपयोग करने पर राख और मिट्टी भी अमृत का काम कर देती है किन्तु गलत उपयोग करने पर गुणकारी औषधि तथा मधुर मिष्ठान भी जहर बन जाता है। जीवन में प्राप्त धनसंपदा का एवं शरीर की शक्ति का समुचित प्रयोग परोपकार के कार्यों से होता है, तो दुरूपयोग से कई अनर्थ भी पैदा हो सकते हैं। अतः महापुरुषों ने कहा है - जीवन रूपी महल को ज्ञान की रोशनी और सद्गुणों की सौरभ से महकाना ही जीवन का सदुपयोग है। जहाँ ज्ञान और सगुण की सुगंध का मणिकांचन सुयोग हो वहाँ जीवन स्वतः सार्थकता को प्राप्त हो जाता है।
अवतार मानवीनो फरीने नही मळे ।।
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