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इस दुनिया में विद्वानों का, डॉक्टरों का, वकीलों का तथा राजनेताओं का जितना महत्त्व है उससे कई गुना अधिक सद्गुरूओं का महत्त्व है। यदि संसार में विद्वान आदि न रहें तब भी संसार चल सकता है। किन्तु सद्गुरू न रहें तो सन्मार्ग कौन दिखाएगा.....? भारतीय मनीषियों ने सद्गुरू को परमहंस कहा है। क्योंकि वे असार को छोड़कर सार को ग्रहण करते हैं। सद्गुरू जीवन रूपी ट्रेन का स्टेशन है। ट्रेन यदि स्टेशन पर रूकती है तो कोई खतरा नहीं होता बल्कि कोई विकृति हो तो वहां दुरूस्त हो सकती है। स्टेशन पर ही उसे कोयला-पानी मिलता है और कुछ देर के लिए विश्रान्ति भी मिलती है। सद्गुरू की शरण में भी जब कोई पहुंचता है तो उसके जीवन के विकार दूर हो जाते हैं। उसकी अंधी दौड़ को विश्राम मिलता। है एवं उसे जीवन की राह का पाथेय भी प्राप्त होता है। सद्गुरू के सान्निध्य का हर पल ज्ञान की लौ को - प्रज्वलित करने वाला होता है ठीक उसी प्रकार जैसे एक जलता हुआ दीपक दूसरे बुझे दीपकों को प्रज्वलित करने वाला होता है। ऐसे सद्गुरूओं का आदर किया नहीं जाता वह तो अन्तस् की हृदय-सरिता से सहज प्रवाहित होता है। जिसमें न कोई दिखावा है न औपचारिकता और न ही तनाव। ऐसे सद्गुरु नौका । की तरह होते हैं स्वयं भी तिरते हैं औरों को भी तारते हैं।
१५ तस्मै सद्गुरवे नमः ।
सदगुरू
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