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________________ अनित्यता {अनित्यं हि जगत् सर्वम् {{ । पद, पैसा और प्रतिष्ठा यदि एक साथ मिल जाए तो अधिक मत इतराना वर्ना जब ये खो जाएंगे तब तड़पना पड़ेगा। रूप, बल और जवानी की अवस्था में बहुत ज्यादा खुश मत होना वर्ना बुढ़ापे में रोना पड़ेगा। जीवन में प्राप्त उपलब्धियों का उत्सव जरूर मनाना मगर यह मत भूल जाना कि जो मिला है वह हमेशा के लिए रहेगा। जो आज हे वह कल न भी रहे। यहाँ सब कुछ बीतने के लिए। ही मिलता है। इस संसार में समय का पहिया हर चीज पर घूमता है अतः सुख के क्षणों में प्रभु से प्रार्थना करना - हे प्रभो ! मुझे इन क्षणिक सुखों में आसक्त मत होने देना, मुझे सोने मत देना। मुझे सावधान रखना कहीं मैं फिसल न जाऊँ। संत कबीर ने कहा है - "जो सुख में धर्म को नहीं भूलता उसके जीवन में दुःख भी नहीं आते । यह शरीर, यौवन, परिवार, धन, सत्ता, सुखद संयोग और जीवन सब कुछ अनित्य है। जैसे छोटे बच्चे बड़ी मेहनत और लगन से ताश का घर बनाते हैं और हवा का एक झोका ऐसा आता है कि वह बना-बनाया महल एक पल में गिर जाता है। ऐसे ही यह जीवन-महल एक दिन धराशायी हो जाएगा। यदि यह अनित्यता का बोध बार-बार दोहराने से चेतन मन से अचेतन मन में चला जाए तो सुप्त चेतना जाग सकती है और जो जागकर जीते हैं उनके जीवन में कोई तनाव नहीं रहता। 1 Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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