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जीवन जीवन एक यात्रा है जिसमें चलना ही चलना है। दिन और रात बिना रूके अनवरत चलते ही जाना है। तभी तो उपनिषद् कहते है - ''चरैवेति-चरैवेति'' अर्थात् चलते रहो-चलते रहो, चलना ही जीवन है। कहते हैं इस जीवन में पौ जन्म है, प्रभात बचपन है, दोपहर जवानी है तो संध्या बुढ़ापा है और रात मृत्यु है। कहा भी है - ''सुबह हुई शाम हुई, एक दिवस बीत गया, जीवन रहट का एक डोल रीत गया।'' जीवन की एक मंजिल होनी चाहिए तभी जिंदगी के कोई मायने हैं। मृत्यु आने से पूर्व यह समझ लेना होगा कि जीवन का उद्देश्य क्या है ? क्योंकि दुनिया में बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो जीते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि वे जीते क्यों हैं ? जीवन का उद्देश्य यदि सिर्फ जीवन का निर्वाह करना ही है तो ऐसा पशु-पक्षी भी कर लेते हैं फिर मनुष्य में और पशु-पक्षियों में अंतर ही क्या रहा ? मनुष्य की जिन्दगी एक अवसर है स्वयं को जानने का
और स्वयं को पाने का किन्तु जीवन में क्या-क्या छिपा है यह पता भी नहीं कर पाते कि जीवन अपनी Boundary को पूरी करने की तैयारी में होता है।
। दुर्लभं प्राप्य मानुष्यं विधेयं हितमात्मनः ।।
भीतर रही हुई शक्तियों को, संभावनाओं और दिव्यता को पहचानना
और साकार करना ही मनुष्य के जीवन का पवित्र उद्देश्य है।
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