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Im Sorry
५ न निहविज्ज कचाइ दिए
Apologize भूल का स्वीकार
मनुष्य गलतियों का पुतला है। उससे स्वार्थ, लालच, भय या अज्ञानता के कारण कदम-कदम पर जाने-अनजानें भूलें हो जाती है। भूलों से ही मनुष्य बुद्धिमानी का पाठ पढ़ता है। यह पाठ कड़वा जरूर होता है किन्तु सबसे अधिक विश्वसनीय और तेजस्वी भी होता है। गाँधी जी का कथन है - भूल करना भले ही मानव का स्वभाव है परन्तु भूल को स्वीकार करना समझदारी है और पुनः नहीं दोहराना वीरता है। जो अपनी गलतियों पर गर्व करता है वह तो शैतान है। अज्ञानी भूल करके उसे कभी स्वीकार नहीं करता। जबकि अपनी भूलों को स्वीकार करना ज्ञानी बनने का श्रीगणेश करना है। बड़े-बड़े महात्मा, तपस्वी और विद्वानों से भी भूलें हो जाती हैं किन्तु वे उसे स्वीकार कर लेते हैं। जो भूल को स्वीकार कर लेते हैं वे अपनी भूल को सुधार भी लेते हैं। इतिहास इसका साक्षी है कि रथनेमि जैसे तपस्वी, गौतम स्वामी जैसे ज्ञानी और आचार्य हरिभद्र जैसे विद्वानों से भी भूल हो गई थी किन्तु उनका बड़प्पन इसमें था कि वे तुरंत अपनी भूल को समझ गए और संभल गए। अपनी गलती मान लेना झाडू लगाने का सा काम है, यह कचरा बुहारकर सतह को साफ कर देता है।
अपनी गलतियों पर पर्दा अपने भविष्य पर पर्दा डालने जैसा है।
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