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________________ {{ किं सक्कणिज्जं न समायरामि? {{ तत्रा जिस जीवन-किश्ती पर कर्त्तव्य का मल्लाह नहीं हो उसे दरिया में डूब जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं। अपने कर्तव्य का पालन करना परमात्मा की पूजा का श्रेष्ठ तरीका है। अक्सर ऐसा होता है कि कर्तव्य पालन के लिए मन तैयार तो हो जाता है किन्तु वह सामने वाले व्यक्ति से भी कर्त्तव्य पालन की अपेक्षा रखता है। राम बनने को मन तैयार है परन्तु छोटे भाई को भरत जैसा होना चाहिए यह अपेक्षा बनी रहती है। यदि बड़ा भाई दुर्योधन की तरह है तो वह भरत बनने को तैयार नहीं होता। पिता यदि पुत्र के प्रति अपना फर्ज सही ढंग से अदा करता हो तो पिता के प्रति पुत्र को भी कर्तव्य पालन में कोई हर्ज नहीं होता। इस तरह की अपेक्षायें तो बाहरी दुनिया में उचित मानी जा सकती हैं परंतु आत्मीय सम्बन्धों के जगत में तो ये घातक ही साबित होती हैं। फल की अपेक्षा से किया गया कर्त्तव्य संबंधों में ऐसी शुष्कता लाता है जिससे मोहब्बत का दरिया सूखने लगता है। आत्मीय चेहरे अजनबी होने लगते हैं। सहानुभूति खो जाती है, सहृदयता गायब हो जाती है... अतः समझदारी इसी में है कि भली-भाँति अपने कर्तव्य का पालन करके सन्तुष्ट हो जाना और दूसरों को अपनी इच्छानुसार करने के लिए छोड़ देना। n Education International For Private & Personal Use Only www.jainelihranina
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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