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________________ संग १५ संबंधी कायटयो सज्जणेहिं । चार दिन की जिन्दगी में मनुष्य किसी न किसी का संग अवश्य चाहता है। संसर्ग से ही मन में गुण और दोष पैदा होते हैं। यदि काला बर्तन हाथ से पकड़ लिया जाए तो अपने हाथ में कालिख लग ही जाती है। बगीचे में बैठने से सुगंध मिलती है और शोलों के पास बैठने से गरमाहट मिलती है। प्रश्न उठता है कि संग किसका करें? जिसमें सज्जनता हो, सहिष्णुता हो, जिसमें दूसरों का भला करने की भावना हो तथा जो ज्ञान, विचार और कर्म से श्रेष्ठ हो उनका संग करें अथवा जो गुणों में अपने जितना समान हो उनका संग करना चाहिए। अपने से हीन तथा निकृष्ट व्यक्ति के संग से बुद्धि, भावना और संस्कारों में हीनता आ जाती है। अपने से श्रेष्ठ का संग करने से मनुष्य विकसित होता है। यदि अपने से विशिष्ट या तुल्य का संयोग न मिले तो अकेले ही रह जाना भला परन्तु अपने से हीन का संग कभी न करें। महाकवि गेटे ने कहा है - मुझे बताइए आप के संगी साथी कैसे है तब मैं तुम्हें बता दूँगा कि आप कैसे हैं? जन्मश्रेष्ठ, कर्मश्रेष्ठ, जातिश्रेष्ठ और संगश्रेष्ठ - इन चारों में संग श्रेष्ठता ही सर्वश्रेष्ठ है जो शेष श्रेष्ठता का मूलाधार है। कहा भी है - सत्संगति मान बढ़ाती है, पाप मिटाती है, अन्तः करण को प्रसन्न करती है और यश फैलाती है O olenctional For Private & Personal Use Only www.jamo
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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