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तुलना (तोलने वाला) {{ चरेज्जऽत्तगवेसए ।
मनुष्य के जीवन की समस्त उलझनों का आधार तुलना है। प्रकृति और पशु पक्षियों में कोई तुलना नहीं होती। एकमात्र मनुष्य ही इस धरातल पर ऐसा है जो स्वयं को दूसरों से तोलता रहता है। छोटा बड़ा व्यक्तित्व करने की कोशिश करना मनुष्य के क्षुद्र मन का लक्षण है। दुनिया के कुछ लोग ऐसे हैं जो स्वयं को बड़ा नहीं करते किन्तु दूसरों को छोटा करने की कोशिश में लगे रहते हैं। वे सोचते हैं जब दूसरा छोटा हो जाएगा तो उसकी तुलना में हम बड़े श्रेष्ठ मालूम पड़ेंगे। परिणाम यह निकलता है कि वे न स्वयं को बड़ा बना पाते हैं न दूसरों को छोटा साबित कर पाते हैं। तुलना का मूल कारण शक्ति की आकांक्षा में छिपा है। प्रत्येक मनुष्य यही सोचता है कि कैसे मैं दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली हो जाऊँ ? सच्चाई तो यह है कि मनुष्य दूसरों से महान हो यह आवश्यक नहीं, आवश्यकता तो यह है कि वह अपने से छोटा न हो। भरत राम के समान महान नहीं थे पर उनकी महानता यह थी कि वे अपने आप में महान थे। मनुष्य को अपने आप से छोटा नहीं होना चाहिए। अपने जैसा होने में ही आत्म-गरिमा है क्योंकि दूसरे जैसा होने का यहाँ कोई उपाय नहीं।
अतः दूसरों का सम्मान करो किन्तु होना तो सदा अपने ही जैसा चाहो।
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