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राना मनुष्य जब कुछ पाता है तो खुशी से गाता है
और जब कुछ खोता है तो दुःखी हो कर रोने लगता है। जीवन में प्राप्त धन, यश, पद एवं अनुकूलताएँ जब उसके हाथ से फिसलती हैं तब वह हजारहजार आँसू बहाने लग जाता है। सच्चाई यह है कि ये दुःख के आँसू नये दुःख को ही जन्म देते हैं। जो जैसा है उससे वैसी ही तो संतति होगी। जौ से जौ एवं चना से चना ही पैदा होता है। अपने दुःखों के लिए व्यक्ति जहाँ भी रहा है रोता ही रहा है। रोना हीन भावना का एवं मानसिक दुर्बलता का सूचक है। दुःख का प्रतिकार करने के लिए आदमी आँसू बहाता है पर वह यह नहीं जानता कि इस तरह से तो दुःख और अधिक गहरा बनेगा। यह आँख रूपी ज्योतिदीप आँसू बहाने के लिए नहीं है। यदि आप मुस्कुराओगे तो ये ज्योतिदीप जगमगा उठेंगे। मुस्कान सुगंध की भाँति मन को आनंदित करने वाली होती है। रोना तो जीवंतता की गति में अवरोध पैदा करता है और मुस्कान जीवन को एक लाभात्मक गति प्रदान करती है। रोने के क्षणों में यह बोधात्मक उद्बोधन स्मरणीय है - "छुप-छुप आंसू बहाने वालों ! एक फूल के मुरझाने से गुलशन नहीं उजड़ा करता और एक चेहरे के रूठ जाने से दर्पण नहीं टूटा करता। एक बगिया उजड़ जाए तो दूसरी बनाइए और जिन्दगी को जिन्दगी की तरह बिताइए।"
११ साक्षिभावं समाचरेत् ।।
Ouel
Goodbye Sadness
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