SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह एक सत्य है कि वही मनुष्य उपेक्षित होता है जो दूसरों की उपेक्षा करता है। जो दूसरों की अपेक्षाओं का विचार नहीं करता वह दूसरों से अपनी अपेक्षाओं को पूर्ण होने की आशा भी नहीं रख सकता। पर सापेक्ष जीवन तो दुःखी जीवन है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई भी व्यक्ति आपकी उपेक्षा नहीं कर रहा हो फिर भी लगता ऐसा है कि "अमुक व्यक्ति मेरी उपेक्षा कर रहा है"। ऐसी सोच एक मानसिक रोग है जो मन की विकृति से पैदा होती है जिससे जीवन में उदासी का साम्राज्य छा जाता है। जो व्यक्ति दिन रात अपने कर्त्तव्यों में ही प्रवृत्त रहता है वह कभी सोचता ही नहीं कि मेरी उपेक्षा हो रही है। तभी तो कहा है - जो व्यक्ति दूसरों के प्रति अपने कर्त्तव्य का ख्याल रखता है वह न दूसरों की उपेक्षा करता है और न यह सोचता है कि “मैं उपेक्षित हो रहा हूँ।" यदि आप अपनी उपेक्षा नहीं चाहते तो अपने व्यक्तित्व को गुणों से सुवासित बनाने का प्रयत्न कीजिए। आप अपनी योग्यता को इस कदर सिद्ध कर लें कि आपके बिना दूसरों का कार्य स्थगित हो जाए। इसके लिए अपने आस-पास के लोगों की अपेक्षाओं को पूर्ण करने का प्रयत्न करते रहिए । उपेक्षा {{ गौरवाय गुणा एव ।। जो दूसरों की अपेक्षाओं का ख्याल रखता है वह कभी उपेक्षित नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only 101 www.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy