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आख
नेत्र तथा शीलम् ।
आँख दिल का आईना है। जो बात शब्द नहीं कहते वह आँखें कह देती हैं। जो आपके भीतर है उसे बाहर झलकाने वाली । ये आँखें ही हैं, तभी तो लज्जाजनक बात होते ही आँखे झुक जाती हैं। आनंदित होने पर चमकती हैं। करूणा का भार आते ही बरस पड़ती हैं और क्रोध आते ही जल उठती हैं। आँखों से ग्रहण किए हुए भावों का असर सीधा मन पर होता है क्योंकि आँखों का और मन से का गहरा रिश्ता है तभी तो महापुरूषों के चित्र को देखकर या उनके दर्शन करके मन में पवित्रता जाग जाती है तथा चित्रपट पर रंगीन दृश्य देखकर मन में विकार जाग जाते हैं। शरीर के समस्त अंगो में आँख ही अधिक सक्रिय है क्योंकि उसकी कार्यक्षमता ऐसी है जो कान और मुख का भी कार्य-भार संभाल लेती है। यही कारण है कि जितना देखा जाता है उतना न तो सुना जाता है न बोला जाता है। पाँच इंद्रियों में चक्षु इंद्रिय ही आक्रमक बनकर प्रक्षेपण करती है अतः आँखें सदा कुछ न कुछ खोजती है। भक्त तुकाराम भगवान की प्रार्थना करते हुए यही कहते थे कि -
"हे प्रभु! मेरी आँखों में कभी भी विकार मत पैदा होने देना। यदि तू ऐसा न कर सके तो मेरी आँखें छीन लेना।
प्रभुदर्शन, संतदर्शन, सत्-साहित्य का नित्य पठन तथा दुःखियों के दर्द का संवेदन करना ही आँखों का सदुपयोग करना है।
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